"सफर मे हुँ"
एक दूरी तय कर रहे हैं... एक शख्स हैं जिसे रोज जी रहे हैं।।
सफर कुछ इस तरह चल रहा है हमारा__ हाथ नहीं थमा मगर मुस्कुरा के साथ चल रहे हैं।।।
अपनी तरफ़ से कम उनकी तरफ से थोड़ा ज्यादा.. चल रहे हैं हम।। एक शख्स है जिसे रोज जी रहे हैं हम।।
चलते चलते यूँ ही पूछ लिया क्या आदत अच्छी लगी हमारी...
मुस्कुरा के कह दिया कुछ भी नहीं।। अब हम ये कैसे मान ले की दिल मे कुछ नहीं उनके!!
वो जो नज़रों से बयाँ करके सब कुछ लफ़्ज़ों से दुखाते हैं!!
वो आँख उठा कर कुछ इस तरह देखते हैं हमें...
जैसे खुद की कमाई दौलत है हम। । यही वो शख्स है जिसे रोज जी हम।।