Hindi Stories | हिन्दी कहानी - "मधु"
Read this in English -:Madhu story | Story in English
ट्रेन के आने का वक्त हो चला था। हम वक्त के थोड़ा पाबंद थे इसलिए वक्त से पहले ही आ गए थे। मधु की साड़ी का रंग उसपे बहुत जांच रहा था, ना जाने क्यों आज मधु का मन बेचैन सा था! हजार बार पूछने पर भी जवाब में सिर्फ कुछ नहीं ही सुनाई दिया। आज मधु कुछ अजीब ही बर्ताव कर रही थी मानो उसे अपना बचपन फिर से जीना है। यूँ तो अकेले में भी नज़र उठा के नही देखती है पर आज न जाने कैसे इतने लोगों के सामने मेरे काँधे पे अपना सर रख के सोई है। मुझे धीरे से बोली पानी ले आओगे.... मैं पानी का बोतल देखा तो वो खाली था, मैं मधु को एक बैग के सहारे छोड़ कर पानी लेने गया, पानी भरते हुए एक मासूम सी आवाज़ सुनाई दी। बाबूजी.. बाबूजी... क्या आप एक मोगरे का गजरा लेंगे? सुबह से एक भी नहीं बिका हैं। छोटा सा बच्चा न जाने कितनी तकलीफो से गुज़र के मुझ तक पहुँच होगा, उसकी आँखों मे एक उम्मीद दिखा मुझे देख के।। मैंने पूछा कैसे दिये? आवाज़ मे एक मसुमियत लेकर बोला जो मन हो दे दीजिये बाबूजी। मुझे मधु का हँसता हुआ चेहरा याद आया मधु का वो अतुल्य मुस्कान और इस बच्चे का भोलापन ये क्या इशारा था उस ईश्वर का जो मैं समझ नहीं पा रहा था। और अब मैं कैसे इस समय, परिस्तिथि, प्रेम और इस वात्सल्य का मूल्य लगाऊ। फ़िर याद आया मधु से ही पूछ लेता हूँ, मैं उस बच्चे को मधु के पास ले गया। मधु देखो मैं किसे लाया हुँ: मधु की आँखें एकटक मुझे ही देखें जा रही थी, मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही लोगों मे अफरा तफरी मचा गया। किसी को अपनो से मिलने की जल्दी थी, तो किसी को शहर छोड़ने की जल्दी थी। कोई अपना समान समेट रहा था तो कोई अपनी यादें समेट रहा था। इस बीच मुझे फिर सुनाई दिया! बाबूजी जल्दी कीजिये। मैं मधु को आवाज़ लगा रहा हू पर वो अनसुना कर मुझे ही देखें जा रही थी, मैं पास बैठा और बोला आओ बालों मे गजरा लगा दूँ। पर उसे शायद अच्छा नहीं लगा वो मेरे गोद मे अपना सर रख कर सो गई। मैं पूछा अगली ट्रेन हमारी हैं तुम तैयार हो ना कुछ छुट तो नहीं रहा है? मधु निः शब्द मेरे गोद मे सो रही है मैंने वो सारे गजरे खरीद लिए ये सोच कर की तीन दिन का लंबा सफर हर रोज़ नया कहा से लाऊंगा।
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जिंदगी बड़ा ही बेरंग सा था, पर जब से मधु के लिए फूलों का गजरा खरीदने लगा उसने मेरे जिंदगी के बाग को महका दिया। अपने प्यार, ममता और अपनी परवाह से। जब जब उसे देखता हूँ तो लगता हैं माता पिता के बाद यही एक उस ईश्वर का आशीर्वाद हैं जो बिना मांगे मिला। क्या इस औरत का कर्जा कभी चुका पाऊंगा मैं? जो खुद परेशान होके भी मुझे संभलती है दुनियाँ से पहले मेरे बारे में सोचती हैं। एक नारी कैसे एक बेटी, बहन, पत्नी, दोस्त,और एक माँ इतने सारे रिश्ते कैसे एक नारी निभा सकती हैं वो भी अपने सौम्य से लहज़े मे रह कर। मधु की वो आँखें आज भी याद है जो पहली नज़र में भा गया था, मुझे यूँ तो किसी चीज़ की चाहत कभी थी नहीं जिंदगी से पर जब वो आँखे देखा तो लगा की ये आँखे सुबह शाम देख सकता हूँ क्या? एक बार फिर लोगों मे हलचल होने लगी सब अपना-अपना समान देख रहे थे । व्यवस्थित जिंदगी से दूर एक शोरगुल भरा माहौल मे एक अजीब सी घुटन हो रहा था। क्यों मन व्याकुल हो रहा था क्यों ठंडी हवाओ के होते हुए भी तर हो रहा हुँ मैं? ख्याल आया "मधु"। एक ममता की मुरत इतनी निर्दयी कैसे हो सकती हैं, जो सात वचन मधु ने 30 साल निभायाए हैं बिना किसी शिकायत के आज मेरे खिलाफ़ कैसे जा सकती हैं? मधु से रिश्ता सिर्फ मैंने नही बल्कि मेरे सगे संबंधियों ने भी जोड़ा था फिर आज कैसे मुझे इतना बड़ा सज़ा दे सकती हैं! जिन आँखों को देखने के लिए हर रोज वक्त से पहले मजदूरों को छुट्टी दे दिया करता था आज वो आँखे मेरे सामने ही अनंत चिर युग की नींद मे सो गयी थी। ये स्वीकार करना असंभव हो रहा था कि मधु की साँसे मेरे हाथों से फिसलता जा रहा है। एक नये सफर पर निकले थे हमसफर बन कर। कुछ वादो के साथ लडाई झड़गा तब तक करेंगे जब तक चाँद सूरज हैं । एक दूसरे की परवाह तब तक करेंगे जब तक कायनात हैं। और साथ तब तक रहेंगे जब तक ईश्वर हैं। और वही ईश्वर को साक्षी मान के आज हमने सातवी बार सतवा वचन लिया था। सातवी बार सात फेरे लिए थे। मानो पूरी दुनिया रुक सी गई हो अफरा तफरी इतनी की किसी को सुध ही नहीं हैं की यहाँ एक औरत के लाश के साथ-साथ एक जिंदा आदमी लाश बन रहा है। खैर ये तो दुनियाँ का दस्तूर है इन बेगाने लोगों के बीच एक मधु ही सब कुछ थी मेरे लिए। मेरा घर, मेरा संसार सब मधु ही थी। इतने शोर के बीच मानो कोई हवा इन सब को मेरे कानों मे आने से रोक रहा था। जैसे कोई जादूगर अपनी छड़ी घूमता है और मौसम बदल जाता हैं। मैं भी एक छड़ी के तलाश में था। एक चाहत होता था घर वापस आने का। अब तो वो घर नही मकान हैं जहाँ सिर्फ कुछ ईटे, सीमेंट और कुछ फर्निचर होंगें। किसी होगी वो सुबह मेरे मधु के हाथ की चाय के बिना? वो तुलसी कैसे महकेगी मेरे आंगन मे मधु के पूजा के बिना? हर रोज अब काम से घर आने की जल्दी कैसे होंगी जब तुम्हारी आँखे मेरा इंतज़ार नही करेगी। मैं 500 लोगो के सामने इलेक्शन का भाषण कैसे दूंगा? मेरे भाषण की लेखिका मुझे छोड़ जा चुकी है उस अनजान से रास्ते पर जहाँ का पता पूछना मैं भूल गया था। अब ये साँसे भी बोझ जैसा लग रहा है जहाँ तुम साथ नही। मन क्यों इतना उमड़ रहा है तुम क्यों आई थी मेरे जीवन में जी लेता मैं अपना ये पहाड़ जैसा बेरंग जिंदगी अकेले। इस तरह तुम्हारा जाना सही हैं क्या? मधु मैं क्या जवाब दूंगा उन नन्हे कदमो को जिन्हें तुम्हारा इंतज़ार होता है। कहने को तो तुम उन 10 बच्चों की मैडम हो उन्हे हिंदी बोलना सिखाती हो पर एहसास उन्हे माँ जैसा होता है। वो नन्ही सी आवाज जो तुम्हे मधु माँ कहती हैं मैं उन्हे कौन सा नया पता दूंगा तुम्हारा। एक नये खुशियो के तलाश में अपना घर कभी न छोड़ता मैं अगर मुझे पता होता इस सफर की शुरुआत ऐसे होगी। अब तो ये साँसे भी रिहाई माँग रहा है, ये आँखे बंद होना चाहता है। एक अतीत पीछे खिच रहा है, एक वर्तमान शून्य हो रहा है, और एक भभीष्य अंधेरे के आग़ोश मे समा रहा है। जो सूरज रोज मधु के मंत्र से जागा करता था आज वही सूरज मानो निगलने को आ रहा है। वक्त का पहिया यूँ घूम जायेगा सोचा न था कभी। तुम्हे बाजार भी जाना होता था तो दो दिन पहले बोल दिया करती थी की बाजार जाना है वक्त निकाल के आ जाना। फिर आज अचानक क्यों इस तरह निः शब्द होकर उस सफर पे निकल गई जहाँ तुम्हे मेरी जरा सी भी जरूरत नहीं है? मन फटा जा रहा है की उपर वाले इस सज़ा को सहने की ताकत तो दे देते। या यूँ साँसों को साँसों से अलग न करते। जादूगर अपनी छड़ी घुमा दे और मधु फिर से आँखे खोल के मुझे देखें। इसी आस मे आँख बंद किया ही था की एक मिठी सी आवाज सुनाई दिया...
"सुनिये उठ गए है तो चाय पी लीजिये। बच्चों के आने का वक्त हो गया है"............ | लेखक :- Lily